जलियांवाला बाग हत्याकांड और रोलेट एक्ट

 जलियांवाला बाग हत्याकांड और रोलेट एक्ट

रोलेट एक्ट

1919  के समय भारत के लिए अत्यंत असंतोष का वर्ष था

 देश में फैल रहे राष्ट्रीय भावना और क्रांतिकारी गतिविधियों को कुचलने के लिए ब्रिटेन ने अपनी शक्ति को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता समझे और इसलिए भारत के रक्षा अधिनियम ओं की शक्ति समाप्त करना प्रयास था।

 सरकार ने सर्जिडेंट रौलट की नियुक्ति की चीज जिन्हें इस बात की जांच करनी थी कि भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों के माध्यम से सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र करने वाले लोग कहां तक फैले हुए हैं और उनसे निपटने के लिए किस प्रकार के कानून की आवश्यकता होगी। इस संबंध में सर सिडनी रौलट की समिति ने सिफारिश से की उन्हें ही रोलेट अधिनियम या रौलट एक्ट के नाम से जाना जाता है ।

इस एक्ट के एक विशेष न्यायालय की स्थापना की गई जिसमें उच्च न्यायालय के तीन वकील थे ।

ये न्यायालय ऐसे साक्ष्य को मान्यता कर सकता था जो विधि के अंतर्गत मान्य नहीं थे इनके विरुद्ध मैं कहीं अपील भी नहीं किया जा सकता था ।

 न्यायालय द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार प्रांतीय सरकार को बिना किसी वारंट के तलाशी गिरफ्तारी तथा बंदी प्रत्यक्षीकरण के अधिकार को रद्द करने आदि की असाधारण शक्तियां दे दी गई ।

भारतवासियों ने इस विधेयक को काला कानून कहा तथा इसके विरुद्ध तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त किया


जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सरकारी दमन बलपूर्वक नियुक्तियां तथा कई कारणों से त्रस्त जनता ने पंजाब में हिंसात्मक प्रतिरोध प्रारंभ कर दिया तथा परिस्थिति अत्यंत विस्फोटक हो गई। अमृतसर और लाहौर में तो स्थिति पर नियंत्रण पाना मुश्किल हो गया मजबूर होकर सरकार को सेना का सहारा लेना पड़ा।

 गांधी जी ने पंजाब जाकर स्थिति को संभालने का प्रयास किया किंतु उन्हें मुंबई भेज दिया गया

अमृतसर हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित हुआ शुरुआत में प्रदर्शनकारियों ने किसी भी प्रकार का हिन्स नहीं कि ।

भारतीयों ने अपनी दुकानें बंद कर दी और खाली सड़क को ने ब्रिटिश सरकार द्वारा दिए गए धोखे को लेकर भारत की नाराजगी जाहिर की।

 9 अप्रैल को राष्ट्रवादी सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सत्यपाल को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। इस घटना से हजारों भारतीयों में रोष व्याप्त हो गया और वह 10 अप्रैल 1919 को सत्याग्रह यू पर गोली चलाने तथा अपने नेता डॉ सत्यपाल व डॉ किचलू को पंजाब से बलात बाहर भेजे जाने का विरोध कर रहे थे।

 जल्द ही विरोध प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया क्योंकि पुलिस ने गोली चलाना शुरु कर दिया था जिसमें कुछ प्रदर्शनकारी मारे गए। 

 काफी तनाव फैल गया दंगे में 5 अंग्रेज भी मारे गए और मार्सेला शेरवुड एक अंग्रेज मिशनरी महिला जो साइकिल पर जा रही थी को पीटा गया । 

उपद्रव को शांत करने के लिए तुरंत सैनिक टुकड़ी को भेजा गया क्षेत्र में मार्शल कानून को लागू कर करने और स्थिति शांतिपूर्ण बढ़ाने की जिम्मेदारी वरिष्ठ ब्रिटिश अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनाल्ड डायर को सौंप दी गई।

 डायर ने हालांकि 13 अप्रैल 1919 को एक घोषणा पत्र जारी की की लोग पास के बिना शहर से बाहर न जाएं और एक समूह में 3 से अधिक लोग जुलूस प्रदर्शन या सभाएं ना करें ।

13 अप्रैल दशक के दिन को आस-पास के गांव में लोग बैसाखी बनाने के लिए शहर के लोकप्रिय स्थान जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए ।

 जनरल डायर की घोषणा से अनजान थे ।

स्थानीय नेताओं ने भी इसी स्थिति पर एक विरोध सभा का आयोजन किया त्योहारों के आयोजन के बीच विद्रोह  प्रदर्शन भी शांतिपूर्ण तरीके से चल रही थी जिसमें दो प्रस्ताव रोलट की वापसी तथा 10 अप्रैल को गोलीबारी की निंदा पारित किया गया।

 जनरल डायर ने इस सभा के आयोजन को सरकार आदि को अवहेलना समझा तथा सभा स्थल सशस्त्र सैनिकों के साथ घेर लिया डायल ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के सभा पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया।22

 लोगों पर तब तक गोलियां बरसाई गई जब तक सैनिकों की गोलियां समाप्त नहीं हो गई ।

सभा स्थल के सभी निकास मार्गों के सैनिक घेराबंदी करने के कारण सभा में सम्मिलित से लोग गोलियों से छलनी हो रहे थे।

 इस घटना में लगभग 1000 लोग मारे गए जिनमें युवा महिलाएं बूढ़े बच्चे सभी सम्मिलित थे ।

जलियांवाला बाग हत्याकांड से पूरा देश स्तब्ध रह गया ।वहशी क्रूरता ने देश को मान कर दिया पूरे देश में बर्बर हत्याकांड की भर्त्सना की गई।

 रविंद्र नाथ टैगोर ने विरोध स्वरूप अपनी नाइटहुड की उपाधि त्याग दी तथा शंकर राम नगर नागर ने वायसराय की कार्यकारिणी से त्यागपत्र दे दिया

एपीजे टेलर इतिहासकार के अनुसार "जलियावालाबाग जनसंहार एक ऐसा निर्णायक मोड़ था जब भारतीय ब्रिटिश शासन से अलग हुए " ।

#लॉर्ड चेम्सफोर्ड जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय के वायसराय थे।

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